आदिवासी संस्कृति से जुड़ा मेले का मेरा पहला अनुभव


 जोहार दोस्तों 

मैं अर्चना सिंह मार्को 

बड़ी खुशी हो रही है कि यह पहला ब्लॉग मैं अपने संस्कृति और और पारंपरिक वेशभूषा के बारे में लिख रही हूं।

आप मेले का पूरा वीडियो इस लिंक से देख सकते हैं जो बेहद ही मजेदार है आप खुश हो जायेंगे और अपने संस्कृति और बैगा आदिवासी परिधानों को भी देख सकते हैं और बैगा आदिवासी युवतियों के श्रृंगार के चीजों को भी
यहां क्लिक करें 👇

दोस्तों डिंडोरी जिले के बोंदर ग्राम में 29 नवंबर को हर साल ठक्कर बप्पा जयंती के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है, मैं इस मेले के बारे में बहुत सुन रखी थी कि यहां आदिवासी संस्कृति और पारंपरिक वेषभूषा की झलक देखने को मिलती है, तो इस साल मैं भी मेले में अपनी संस्कृति और खासतौर से बैगा आदिवासी परिधानों को देखने उत्सुकता के साथ गई थी। क्योंकि बैगा जनजाति किसी खास अवसर पर ही अपने परिधान और वेशभूषा पहनती हैं जो पारंपरिक होता है, मेरे गांव से करीब चालीस किलोमीटर की दूरी पर बोंदर गांव है, तो मैं बस से वहां के लिए निकल गई, बस में भीड़भाड़ थी क्योंकि मेले जाने वाले की संख्या बहुत ज्यादा थी, मुझे घर से निकलने से लेकर पहुंचने तक सीट नहीं मिली तो बस में खड़े खड़े सफर करना पड़ा, हालांकि इसका भी अनुभव बेहद अच्छा लगा।




बस से उतरने के बाद मेले तक जाने के लिए लगभग 2 किलोमीटर पैदल चली, हालांकि मैं ऑटो से जा सकती थी लेकिन बहुत ही भीड़ होने के कारण मैं पैदल चलना ही बेहतर समझी, और लोगों से मिलते मिलते उनसे बात करते जाना अलग ही अनुभव कराता है।

लगभग 25 से 30 मिनिट के पैदल सफर के बाद मैं मेले में पहुंच गई

मेले में जैसे ही मैं प्रवेश की भीड़ बहुत ज्यादा थी और लोग आते ही जा रहे थे, क्योंकि ये जिले का पहला मेला लगता है तो सब उत्सुकता से जाते हैं। बहुत दूर दूर से लोग आ रहे थे, बच्चे महिला पुरुष बुजुर्ग सबकी तादात बराबर थी।


मेले में सबसे पहले मिठाइयों की दुकान लगी हुई थी, मैं मिठाइयों को ताजे बनाते देखते अंदर की तरफ गई तो मुझे 2 बैगा जनजाति की लड़कियों अपने परिधान पहनी दिख गई जिनसे मैं खास तौर से मिलने आई थी, माथे और शरीर के अन्य जगहों पर गोदना, काफी आकर्षित लग रहा था, और मुझे यह खास तौर से आकर्षित करती है, पारंपरिक साड़ी पहने दोनों देखकर मुस्कुराने लगी, वैसे वो बहुत शर्मीली थी लेकिन मैंने उनसे फोटो खिंचाने के लिए और अपने यूट्यूब ब्लॉग वीडियो के लिए रिक्वेस्ट की तो वो दोनों मान गई, और उनके साथ कुछ वीडियो बनाई और फोटो भी मोबाइल के कैमरे में कैद की, क्योंकि मैं यादों को संजोए रखने की बहुत शौकीन हूं। शायद आप ही होंगे



उसके बाद जैसे ही वो दोनों लज्जा के मारे चली गईं मुझे मांदर ( मृदंग ) की थाप सुनाई दी मेरा जी तो मांदर की थाप सुनकर झूम उठा, मैं फौरन उस ओर चल दी, जहां मांदर का दुकान लगाए हमारे आदिवासी भैया बजाकर बजाकर ग्राहकों को लुभा रहे थे, और यह मेले में ग्राहकों को लुभाने का अच्छा तरीका भी है, फिर वहीं पास खड़े एक दादा ने मांदर बजाते हुए अपना वीडियो बनाने और फोटो खिंचाने के लिए बोले मैंने उनका फोटो वीडियो ले ली, आप मेरे यूट्यूब ब्लॉग चैनल पर देख सकते हैं मांदर की थाप तो खुश कर ही जाती है।

फिर वहीं पर दोस्त मिल गए जो खास तौर से मिलने के लिए पहुंचे थे, उनके साथ मिलकर फिर हम मेला घूमने लग गए।



लोग अपनी खरीददारी कर रहे थे, झूले का लुत्फ उठा रहे थे, बच्चे मौज के साथ झूले के लिए अपने बारी का इंतजार कर रहे थे, 

मैं झूला तो नहीं झूली क्योंकि ज्यादा से ज्यादा मेले के बारे में अपने ब्लॉग के लिए वीडियो बनाना था तो झूले का वीडियो ली और आगे बढ़ गई, 


लोग टैटू बनवा रहे थे, कई अपने बच्चों के कान छिदवा रहे थे, 

फिर हमें घूमते घूमते एक दुकान दिखाई दिया जिसकी हमें तलाश थी दुकान था बैगा आदिवासी युवतियों महिलाओं के श्रृंगार के चीजों का, जिसके बारे में मुझे जानने की उत्सुकता थी, बैगा महिलाएं खरीददारी के लिए आ रही थी उनसे मिलकर बात कर बहुत अच्छा लगा, उनसे पूछकर यह पता की कि कैसे और कहां वे अपने पारंपरिक वेषभूषा का इस्तमाल करती हैं।

फिर हम मेले के उस ओर चल दिए जहां से गाने और डीजे साउंड की आवाज आ रही थी, वहां पारंपरिक नाचगाने का आयोजन किया गया था, जो आदिवासी समाज की बालिकाएं पारंपरिक नृत्य कर रही थीं, जिसे देखकर बेहद अच्छा लगा, हालांकि भीड़ बहुत ज्यादा थी तो हम अच्छे से देख नहीं पाए लेकिन फोन को ऊपर उठाकर ब्लॉग के लिए कुछ वीडियो बना ली जिसे आप मेरे यूट्यूब ब्लॉग चैनल ARCHNA MARKO VLOGS  में देख सकते हैं।



फिर घूमते घूमते भूख भी लग गया था, क्योंकि मैं घर से कुछ खाकर आई नहीं थी, तो हम खाने के लिए ढूंढने लग गए और एक समोसे के दुकान में जाकर हमने समोसा खाया, 

फिर शाम होने लगी तो मैं अपने दोस्तों से अलविदा कर मेला घूमते हुई निकलने लगी, लेकिन मन मेरा भरा नहीं था लेकिन दिन भी ढल रहा था तो घर भी टाइम से जाना था और ठंड भी बढ़ रही थी,

जाते जाते मैंने घर के लिए कुछ मिठाई ली जो अम्मा के द्वारा आदेशित किया गया था कि वो मिठाई लेकर आना, जिसे हम करी कहते हैं जो आटे और गुड़ के लेप से बनता है, खाने में बहुत अच्छा लगता है और मैं बहुत खाती हूं।



मिठाई लेकर कुछ घूमते देखते एक गुलेल बेचने वाले भैया के पास गई जो बड़े मजेदार थे उनका अंदाज बेहद मसखरा था ग्राहक जो जाते लुभा जाते थे। उन्होंने भी फोटो लेने के लिए कहा तो मैंने वीडियो ही बनवा ली, जो आपको मेरे यूट्यूब ब्लॉग में भी देखने को मिल जायेगा।

जाते जाते मड़ई नाच वाले मिल गए जो डफला और बांसुरी बजाते हुए बजारी मांगते हुए मेला घूम रहे थे, मैने उन्हें बांसुरी बजाते हुए वीडियो के लिए रिक्वेस्ट की वो भी मान गए लेकिन जल्दी चले गए। 



फिर वहां से निकलकर मैं एक दीदी जो गन्ना बेच रही थी उनसे गन्ना ली और निकल मेले से निकल गई। रोड की तरफ जहां से मुझे घर के लिए बस पकड़नी थी।

तो दोस्तों ये रहा मेरा मेले का अनुभव जो बेहद खास था, और आपको मेले का vlog देखकर और अच्छा लगेगा, आप मेले का पूरा vlog मेरे यूट्यूब चैनल ARCHNA MARKO VLOGS  में देख सकते हैं आप लिंक पर क्लिक करके देखें बहुत ही मजेदार है आप देखकर जरूर खुश हो जायेंगे, और साथ साथ आदिवासी संस्कृति से जुड़ी और बैगा आदिवासी युवतियों का परिधान वेशभूषा भी देखने को मिलेगा। 



आपने बहुमूल्य समय निकालकर ब्लॉग पढ़ा आपको सादर सेवा जोहार


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पटवारी के लिए 12 लाख फॉर्म भरे गए । Mp Patwari 2023 ke 12 lakh form bhare gaye

My First Blog