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पटवारी के लिए 12 लाख फॉर्म भरे गए । Mp Patwari 2023 ke 12 lakh form bhare gaye

  पटवारी के लिए 12 लाख फॉर्म भरे गए । Mp Patwari ke 12 lakh form bhare gaye  साल 2022 - 2023 में मध्य प्रदेश ( madhya Pradesh) में लंबे इंतजार के बाद पटवारी के साथ अन्य 6000 पदों पर भर्तियां आई। Mp Patwari जिसपर लाखों लोगों ने अप्लाई किए गए, हाल ही में आए आंकड़े ने बहुत खुलासा किया कि इन पदों के लिए 12 लाख से ज्यादा अभ्यर्थियों ने अप्लाई किया है, जिनमें Phd पी एच डी धारकों से लेकर इंजीनियरिंग डिग्री धारकों ने भी काफी संख्या में अप्लाई किया है,  हालांकि यह पहला मामला नहीं है कि इतने बड़े मात्रा में फॉर्म भरा गया हो, इससे पहले भी पुलिस आरक्षक जैसे पदों पर 10 लाख से भी ज्यादा लोगों ने अप्लाई किया था।   इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश में लगातार दिन ब दिन बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और नौकरियां कम होती जा रही है, सरकारी पदों पर भर्ती कुछ सालों से बाधित थी, जिसे चुनाव के ठीक कुछ महीनों बाद निकाला गया है।  ऐसे में अभ्यर्थियों के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण है कि परीक्षा में सफलता हासिल करें।   200 अंकों का पेपर  MP Patwari के लिए इस बार 200 अंकों का प्रश्नपत्र हल करना होगा, जिसमें गणित mat

कमको मोहनिया - आदिवासियत का अनुभव

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  कोयापुनेम 5 दिवसीय प्रशिक्षण के पश्चात कमको मोहनिया में ही आदरणीय डॉ दिग्विजय सिंह मरावी जी के घर जाना हुआ, जहां उनके पिता जी आदरणीय जगत सिंह मरावी जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,   उन्होंने मेरे कार्यों को सराहा और आदिवासियत के लिए, समाज के लिए कार्य करते रहने के लिए प्रेरित किए, उनका जीवन और उनके द्वारा कही हर बात प्रेरणास्त्रोत हैं, उनसे आदिवासियत को और बारीकी से जानने को मिला, और प्रकृति के साथ आदिवासियों के पुरखों के समय से जुड़े चीजों को बारीकी से जानने को मिला। प्रकृति के महत्वता को जानने को मिला, आदरणीय जगत सिंह मरावी जी 66 साल के हैं उनके शारीरिक रूप से चलने फिरने और क्रियाकलापों को देखकर लगता नहीं कि वे इस उम्र में भी उतनी ताजगी बनाए हुए हैं। बड़े सादगी और सरल भाषा में बेहद गहरे और महत्वपूर्ण चीजों को समझाए, वे और उनका पूरा परिवार से मिला प्यार मेरे लिए सबसे अहम रहा और उनके जीवन को देखना मेरे लिए नया और प्रेरित करने वाला अनुभव रहा, वे पुरखों के द्वारा बताए मार्गों का बेहद करीब से अनुसरण करते हैं, घर में बगिया फूलों से सजे हैं और उसके साथ साथ सभी फलदार पेड़ जो पहले आदिवा

क्या आदमियों को खाते हैं नागा जनजाति ? झूठ या हकीकत

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  क्या आदमियों को खाते हैं नागा जनजाति ? झूठ या हकीकत नमस्कार दोस्तों आप सबका स्वागत है फिर से मेरे इस नए ब्लॉग में दोस्तों आज हम बात करेंगे नागा जनजाति के बारे में जिसके बारे में बहुत कुछ कहा सुना जाता है और जानेंगे कितना सच है और कितना झूठ ? दोस्तों नागा जनजाति ( adivasi  ) अपने परिधान वेशभूषा और रीति रिवाजों को लेकर अपना अलग पहचान रखती है। नागा जनजाति विशेषकर कि अपने संस्कृति को लेकर बहुत ही संवेदनशील है, इनकी संस्कृति यह कि आज भी ये अपने परिधानों में अपने संस्कृति को झलकाते हैं, नागा जनजाति जहां भी रहे अलग ही पहचान में आते हैं। नागा जनजाति मुख्य रूप से भारत के नागालैंड ( Nagaland) राज्य में पाए जाते हैं। इसी जनजाति के कारण राज्य का नाम नागालैंड पड़ा होगा। पूर्वोत्तर और अंतिम छोर में रहने के कारण नागा जनजाति देश के मुख्य धारा से अछूती रह जाती है, प्रकृति और जंगलों के बीच निवास करने वाली यह जाति प्रकृति के अनुरूप ही स्वयं को ढाल लेने में सक्षम होते हैं। दोस्तों नागा जनजाति की एक और विशेषता यह रही है कि उन्होंने कभी भी दूसरों का शासन स्वीकार नहीं किया, अंग्रेजों ने भी इस जनजाति के ऊ

आदिवसीयत को समेटे प्रसिद्ध जगह बैगाचक नाम से है प्रसिद्ध

  जोहार दोस्तों मैं अर्चना सिंह मार्को आप सब कैसे हैं आशा करती हूं कि आप सब अच्छे होंगे। दोस्तों आप सबका स्वागत है मेरे इस नए ब्लॉग में दोस्तों आज हम बात करेंगे एक ऐसे जगह के बारे में जो सिर्फ आदिवासी आस्तित्व के लिए कितना अहम है, तो दोस्तों आज हम बात करेंगे बैगाचक के नाम से सुप्रसिद्ध जगह चाड़ा के बारे में दोस्तों चाड़ा ग्राम डिंडोरी मध्य प्रदेश ( Dindori Madhya Pradesh) जिले में बसा एक आदिवासी ( Adivasi) बहुल गांव है जहां की बहुल आबादी बैगा जाति के लोगों की है। क्यों प्रसिद्ध है यह जगह दोस्तों चाड़ा की शत प्रतिशत आबादी बैगा ( baiga) जनजातियों की थी और यहां बहुतायत में बैगा आदिवासी जनजाति आज भी रहती है। लेकिन इस जगह की प्रसिद्धि और व्यापार के संभावनाओं के कारण अन्य जाति के लोग यहां आकर बस रहे हैं, लेकिन बैगा जनजाति के बहुलता के लिए इस जगह का नाम बैगाचक के नाम से प्रसिद्ध है। यहां की आदिवासी संस्कृति दोस्तों अन्य जगहों के लिहाज से यहां सबसे पुरानी जो आदिवासी संस्कृति है देखने को मिलती है, बैगा जनजाति अपने पारंपरिक रूप से संस्कृति को संजोए हुए है, यहां के बैगा जनजाति के लोग आज भी शादी ब

आदिवासी संस्कृति से जुड़ा मेले का मेरा पहला अनुभव

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  जोहार दोस्तों  मैं अर्चना सिंह मार्को  बड़ी खुशी हो रही है कि यह पहला ब्लॉग मैं अपने संस्कृति और और पारंपरिक वेशभूषा के बारे में लिख रही हूं। आप मेले का पूरा वीडियो इस लिंक से देख सकते हैं जो बेहद ही मजेदार है आप खुश हो जायेंगे और अपने संस्कृति और बैगा आदिवासी परिधानों को भी देख सकते हैं और बैगा आदिवासी युवतियों के श्रृंगार के चीजों को भी यहां क्लिक करें 👇 ARCHNA MARKO VLOGS दोस्तों डिंडोरी जिले के बोंदर ग्राम में 29 नवंबर को हर साल ठक्कर बप्पा जयंती के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है, मैं इस मेले के बारे में बहुत सुन रखी थी कि यहां आदिवासी संस्कृति और पारंपरिक वेषभूषा की झलक देखने को मिलती है, तो इस साल मैं भी मेले में अपनी संस्कृति और खासतौर से बैगा आदिवासी परिधानों को देखने उत्सुकता के साथ गई थी। क्योंकि बैगा जनजाति किसी खास अवसर पर ही अपने परिधान और वेशभूषा पहनती हैं जो पारंपरिक होता है, मेरे गांव से करीब चालीस किलोमीटर की दूरी पर बोंदर गांव है, तो मैं बस से वहां के लिए निकल गई, बस में भीड़भाड़ थी क्योंकि मेले जाने वाले की संख्या बहुत ज्यादा थी, मुझे घर से निकलने से ल

My First Blog

जोहार दोस्तों यह मेरा पहला ब्लॉग पोस्ट है, यहां आपको कई तरह तरह की चीजें गांव से जुड़ी, जीवन पर आधारित, आदिवासी संस्कृति, रीति रिवाज और भी कई चीजें पढ़ने जानने को मिलेगा। सादर सेवा जोहार अर्चना सिंह मार्को